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|रचनाकार=मोनिका शर्मा
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
खेत कुवै माळै जांवती लुगायां
सिमरथ होवैं / छिमता आळी लागैं
जाती बै तो गीत गावैं
खेतां मैं मुळकती सी बतळावैं
लागैं भोत सोवणी
अर सोड़ा मैं रोट्यां पोवणीं
खेतां में अन्नदाता सी बण जावैं
कदे जौ की बाळ्यां नैं हथाळया में लेय'र
टाबरां सी लुकमिंचणीं खेलबा को जतन करैं
तो कदे मूंग-मोठ रो निनाण करती
बातां'ई बातां में मनड़ा री
खरपतवार काढ देवैं
एक-दूजै कै ओळै-दौळै
लुळती जावैं, हड़-हड़ हंस-हंस बतळावैं
घणकरी'क बातां कानां मैं सुणावैं
लांबा-लांबा डिग भरती
कदै सरपट भाजी जावैं
अर कदै बातां सूं ओसाण'ई कोनी पावैं
दिनूगै सूं आथण्यां तांई
दुख सुख रा सगळा
रंगां नैं रळ-मिल जी लेवैं
खेत कुवै माळै जांवती लुगायां।
</poem>
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