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|रचनाकार=मोनिका शर्मा
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
मा कदै कदै खिज्योड़ी सी लागै
फेर बा अंधेरो च्यांणो कोनीं देखै
झाळ ई झाळ में
दिनूंगै सूं सिंझ्यां ताणीं
कामां नैं सळटावै
टाबरां कै कनैंई कोनीं आवै
नीं तो बां कै आसै-पासै डोलै
अर बरोबर में पूछ्यां बी क्यूं'ई नीं बोलै
मा की आ अणकथ चुप्पी
नीं उळझै, नीं सुळझै
टाबर सगळो जोर लगा धापै
भींतां रा मोखां मांय सूं झांकैं
पण मा नीं मुळकै
अर नीं ई बांनै निरखै
फेर टाबरिया बी बोला बाल्यां
एक कानी भींत कै सिट'र ऊबा होज्यांय
मा नैं बस देख्यां ई जांय
फेर तावळी सी, बावळी सी
हुयोड़ी मा सैक्यूं भूल'र
बांनैं झालो देय'र बुलावै
अर झट गळा सूं लगावै।
</poem>
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