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बापूजी / मोनिका शर्मा

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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
बापूजी थारै'ई पाण
सपणा देख्या
उडबां री सोची
अंतस में जलमी
म्हारी पिछाण नै
समझण री कोसिस
आंगळी थारी'ई थाम कै
भविस का ऊमरां में
बिचारां का बीज अर बाकी
हिम्मत ऊपजी
बोला बाल्या गम खावणों
था सूं'ई सीख्यो
हिरदा मांय तपणों फेर बी
सुखां-दुखां मैं मुळकणों
थे'ई समझायो
आ समझ म्हानैं जीवन रो
अरथ बतायो
नीं तो रोही मांय'ई भटकतो रैंवतो
म्हारो अस्तित्व।
</poem>
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