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|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
रोटी तो धरती माथै
सब देसां मांय
अेक जैड़ी,
जीवै लोग उणनै इज
लावण खातर
आपरै नैड़ी।
पण
बै करै रोटी री राजनीति
पैलां भूखा राखै
रोटी रा सुपना दिखावै
आकासां मांय रोटी नै लटकावै
फेरूं
धीरै-धीरै रोटी नै
धरती माथै लावै
अर अेक टुकड़ो हाथां तांई पूगावै
रोटी खातर
बै भागै उणरै लारै-लारै
बां री राजनीति
इणी रै ताण
रोटी खातर इज है
दुनिया मायं घमसाण
जद तांई रोटी है
राजनीति है।

</poem>
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