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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
मिनख हो
मिनखापणो तो राखो
खाली खुद रा गीत
मत ना गुणो
कीं दूजां री भी सुणो
कीं नूंवा बणो
नीं तो लोग कैवैला
ओ मिनख नीं
रूंख है।

</poem>
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