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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
काल तांई थे
सागै-सागै हा
आज क्यूं बदळ लियो
थांरो मारग
इयां कियां तोड़ न्हाख्यो
उण बापड़ै रूंख सूं
पुराणो रिस्तो।
अचाणचक मिलगी हुवैला
हरियाळी
पण बा सदा नीं रैवै सुरंगी
उण रो भी रूप बदळसी
फेरूं इण रूंख री
जरूरत पड़सी
कीं सोचो
इण रूंख रै साम्हीं
माथो टेको।

</poem>
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