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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|अनुवादक=
|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
पाणीं तो
हरमेस ई भरती
गिलास सूं सरु होय
घड़ै तांईं पूगी
मा री पकड़ आंगळी।
घड़ो ऊंचता-ऊंचांवतां
कूवै री पाळ
ना बो बोल्यो
ना म्हैं बतळायो
ठाह ई नीं पड़ी
कद मांखर
उतरगी प्रीत काळजै
आंख्यां गेलै
अब अंतस ऊकळै
आंख्यां भरीजै पाणीं
घर रै पाणीं
थाम दिया पग!
</poem>
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|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|अनुवादक=
|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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पाणीं तो
हरमेस ई भरती
गिलास सूं सरु होय
घड़ै तांईं पूगी
मा री पकड़ आंगळी।
घड़ो ऊंचता-ऊंचांवतां
कूवै री पाळ
ना बो बोल्यो
ना म्हैं बतळायो
ठाह ई नीं पड़ी
कद मांखर
उतरगी प्रीत काळजै
आंख्यां गेलै
अब अंतस ऊकळै
आंख्यां भरीजै पाणीं
घर रै पाणीं
थाम दिया पग!
</poem>