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|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
सबद भरसी साख
थूं म्हैं नीं
खूटती जगती नै
पग पग अरथावण!

आज होसी काल
काल होसी आज
आज आपां
काल कुण
अणबोल्या सबद
भंवसी जगती में
बिन्यां बाकां
ऊंचायां निसार रो सार
खूटती-जगती रो!

आज सुरजी पळपळावै
मारै चौगड़दै पळका
बगै आज बायरो
च्यारूं कूंट
भीतर बाअंडै
काल रो पण कांईं ठाह
भरै कै नीं भरै
साख काल री!
उण बगत होवैला
बिम्ब पड़बिम्ब अदीठ
हेला झाला
मनवार हथाई री
साख अणसाख!

स्यात प्रीत ई बंचसी
जकी अंवेरसी
सबदां नै बीजमान
जिण रा बी'रा
काढसी पानका
पाछा पसारण
सबदां री जाजम!

आव साम्भां
प्रीत रा बीज
ओळ सबदां री!
</poem>
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