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|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

थांरी ओळ्यूं
कोरडू सरीसी
नित खदबदै
मन री हांडी
रड़कै आंख्यां
नीं सीजै
नीं पड़ै मगसी!

सोचां री थाळी
नित पुरसीजै ओळ्यूं
ठाह नीं किण हाथां
आंगळ्यां रै पळियै
म्हैं ई घालूं
आस रो घी
पण जावै नीं
ढीठ ओळ्यूं रै
कांकरा री किरकिराट!
</poem>
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