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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
काल थारै काळ हो
आज म्हारै काळ है
पैलां थूं आगै
अर म्हैं लारै हो
आज म्हैं आगै अर थूं लारै
बगत-बगत री बात है
थूं खेती मांय
हळ दांई जुत्यां रेयौ
म्हैं बणग्यो नेता
अबै थूं लारै इज रैवैला
म्हारै घर मांय तो
तीसूं दिन दिवाळी रैवैला
क्यूंकै
आयै बरस
अकाळ है
थूं है
अर म्हैं हूं।
आगै म्हनै रैवणो है
रैसूं आगै
अर थूं लारै रैवण री
जूण लेय ‘र आयो है, रैसी लारै।

</poem>
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