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|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

जड़ होवण सूं
बंचण सारू
भोत जरूरी है
आपरी
जड़ां सोधणों-साम्भणों
जड़ां माथै
इकलग ऊभणों।

अमर बजे
रूंख चढी अमरबेल
कद है पण अमर
पड़तख जाण
जड़हीण री मौत
तय है साव
जड़ सोध
जड़ ई दिरायसी
सागी ओळख
मिनख होवण री।
</poem>
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