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चाव / मधु आचार्य 'आशावादी'

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<poem>
बाबोसा रो झोळो
उण मांय चांद
सूरज अर तारा
टाबरां नै लागता प्यारा।
बै झोळो हिलावता
सूरज निकाळ ‘र दिखावता
झट सूं दिन नै रात बताय
चांद रा दसरण करावता।
आखो गांव राजी
कियां हुय सकै बेराजी
झोळै मांय चांद अर सूरज नीं
बां खातर
केई दूजी चीजां भी निकळती
उणनै लेवण खातर
ठीकरी चांद है, मानणी पड़ती
साच कैवै
लोभ अर चाव
मिनख नै झूठ बोलावै
बो चावै ज्यूं गीत गावै।

</poem>
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