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|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
मौत सूं म्हारो
जूनो बेलीपो
बा बराबर आवै
म्हनै डरावै
कड़वा बोल सुणै
अर भाग जावै
म्हैं नीं न्यूंतूं मौत नै
मत्तै ई आवै
उण दिन
मौत आई
पण चुप रैयी
डरावण रो काम ई नीं करियो
म्हैं अचंभै मांय
उण सूं सवाल करियो -
‘कांई बात है
आज सैंगमैंग कियां है
बोलै क्यूं नीं !
बा रोई
आंख्यां मांय आंसू
बोली -
‘जद अेक बार आवणो है
थारै कनै
तद बार-बार क्यूं आवूं
थनै क्यूं डरावूं !
म्हैं बोल्यो -
‘भोळी है थूं
म्हैं थासूं कदैई नीं डरियो
जाणूं हूं
अेक बार इज आवै थूं
बाकी तेा थूं खाली डरावै
डर नै भगायां
थूं तो मŸौ ई भाग जासी । ‘
मौत बोली -
‘साच कैवै थूं
लोगा नै समझा
अेक बार आवणो तै है
बार -बार क्यूं बुलावै ।‘
अेक जीवण
अेक मौत
आ बात
दूजा मिनख क्यूं नीं जाणै।

</poem>
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