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भूत / मधु आचार्य 'आशावादी'

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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
क्यूं आवै
थूं बार-बार म्हारै साम्हीं
म्हैं नीं बुलावणो चावूं
थारै ठोकर मारणो चावूं
थारै मरयोड़ै डील माथै
पग राख‘र
आगै निकळणो चावूं
पण बार -बार
थूं म्हारै साम्हीं आवै
म्हनै डरावै
मनमानी सूं म्हनै चलावै
नीं चालूं थारै सागै
निकळणो चावूं आगै
थूं भूत है म्हारो
म्हैं अबार चानणै मांय
जीवणो चाऊं
भूत नै भगाय
नूंवो इतियास रचाणो चावूं
जा लेय ले पग पाछा
फेरूं मत आईजै साम्हीं
बो भूत ई
हंसतो -हंसतो निकळग्यो
पण उण रो अैसास
म्हारै मांय भरग्यो ।
</poem>
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