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|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>
म्हारी
साढे नौ बरसां री
बेटी मानसी
घर रै अेक खुणै
या पेड़्यां रै
असवाड़ै-पसवाड़ै
ढूंढ ई ल्यै
आपरै खेलण री जिग्यां

बठै गुड्डै-गुड्डियां सारू
फूटरी सी बैठक
रसोईघर
मेकअप रूम बणावै
अर सोवणआळै
कमरै नै सजावै

बैठक में
अेक टीवी लगावै
अर दूजै पासै
गुड्डै-गुड्डियां रै
टाबरां सारू
झूलौ भी

पछै मन्नै दिखाय'र
बींरौ फोटू खिंचवावै
इतरावै
मटकावै
कविता रचावै
कदी चित्र बणावै
अर थोड़सीक पढ'र
खाणौ खावै

टीवी रा सीरियल देख'र
देर रात नै सो ज्यावै

बा जिण दिन
नीं पढै
उण दिन
बींरी मम्मी
म्हांनै देवै औळमौ

तद
मानसी
खाली मुंडौ बिचकावै

अेक दिन
बण आपरा
सगळा खेलणियां ,
सांवट'र
कार्टून भर लियौ पूरौ

मन्नै ईंयां लाग्यौ
जाणै मानसी
आपरा सुपणा
अर
मेरौ बाळपणौ
कैद कर दियौ कार्टून में

अबै
बा पढती रैवै
कदी-कदी
देख लेवै टीवी

मन्नै लागै
अबै घर में
सगळी चीज्यां दीखै
उदास-उदास

केठा क्य
घर भी
अबै
घर नीं लागै मन्नै

मानसी रा सुपणा
अर मेरौ बाळपणौ
अब भी कैद है
बीं कार्टून में
जिका
तडफ़ण लागरैया है
मांय ई मांय

अर
मानसी रै
नान्हा-नान्हा हातां नै
अडीकै
अेकर छुअण सारू।

</poem>
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