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सार! / दीनदयाल शर्मा

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|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>

थूं
आजतांईं
उगतौ
सूरज ई
देख्यौ है

आज देखी
छिपतै सूरज नै

जीवण रौ
सार है सूरज।
</poem>
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