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सोच -२ / दुष्यन्त जोशी

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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
पारस पत्थर सूं
कम नीं है
थारौ सोच

कै
जित्ता मिलै
उणां सूं
करो थे
कम खरच।
</poem>
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