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दुसमण / दुष्यन्त जोशी

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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
आपरौ
अेक भी दुसमण नीं है
आखै जग में

सगळा भायला है
आपरा


इण बात रौ
है संकेत
कै आपरै भाग
बिसरा दियौ आपनै।
</poem>
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