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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=
}}
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<poem>
टूट कर जाता बिखर गर हौसला होता नहीं
क्यों यकीं होने लगा कोई ख़ुदा होता नहीं।
आदमी ही आदमी के काम आता दोस्तो
आदमी से बढ़ के कोई दूसरा होता नहीं।
राम, रावन सब इसी दुनिया में आ कर के बनें
जन्म से इन्साँ कोई अच्छा , बुरा होता नहीं।
चार पल के वास्ते बेशक़ किसी को हो ग़ुरूर
धन जमा करके बशर कोई बड़ा होता नहीं।
क्या अहमियत प्यार की है , क्या ज़रूरत है तेरी
क्या पता चलता अगर तुझसे ज़ुदा होता नहीं।
देर से आई समझ में बात यह लेकिन मेरे
बावफ़ा होता जो मैं वो बेवफ़ा होता नहीं।
</poem>
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|संग्रह=
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टूट कर जाता बिखर गर हौसला होता नहीं
क्यों यकीं होने लगा कोई ख़ुदा होता नहीं।
आदमी ही आदमी के काम आता दोस्तो
आदमी से बढ़ के कोई दूसरा होता नहीं।
राम, रावन सब इसी दुनिया में आ कर के बनें
जन्म से इन्साँ कोई अच्छा , बुरा होता नहीं।
चार पल के वास्ते बेशक़ किसी को हो ग़ुरूर
धन जमा करके बशर कोई बड़ा होता नहीं।
क्या अहमियत प्यार की है , क्या ज़रूरत है तेरी
क्या पता चलता अगर तुझसे ज़ुदा होता नहीं।
देर से आई समझ में बात यह लेकिन मेरे
बावफ़ा होता जो मैं वो बेवफ़ा होता नहीं।
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