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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
दीन-धरम
जात-पांत
वतन अर भासा सूं
कोनी सरोकार
म्हारै सारू
बै फगत
ड्राइवर-खलासी है
म्हारा मा-जाया भाई-सा
जकां री अेक हामळ में
लुक्योड़ी है-
म्हारै टाबरां री मुळक!
</poem>
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