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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
भोर सूं आथण तांई
आखै दिन
साधनां री चिल्ल-पौं
धुंवै अर धूड़ रा गुब्बार
ओपरै मिनखां री आवाजाई बिचाळै
कळजायेड़ी गळी रो अंतस
हरखीजै
जद उणरै आंगणै
बास रा टाबरिया
रमै क्रिकेट-चिड़ीबल्लो।

टाबरां रो रमणो
उच्छब है-
गळी सारू।
</poem>
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