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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>

जकी जमीं माथै
बै चुगै धातु रा टुकड़ा
कदी हुवता बठै-
बां रा खेत।

खेत में
बै भेळो करता ग्वार
काढता खळो
चरावता रेवड़
अर बाजता किरसाण।

बगत परवाण
बीं सागण भौम माथै
बै भंवता फिरै
भूखा-तिरसा
लोखंड-तांबो-पीतळ चुगता
मजूर बणÓर
जिणरी धाड़ी संू
मस्सां हुवै पेट ल्याळी।

आ कविता है
अेक बावळै कवि री।

आंकड़ा बतावै-
सात संू आठ फीसदी हुयगी
देस री विकास दर,
शेयर बजार रो सेंसेक्स
मना रैयो है दिवाळी!

</poem>
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