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थेऊ रै मिस / मदन गोपाल लढ़ा

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<poem>
धपाऊ धीणो गवाड़ी में
दिनूगै-आथण
केनां भरीज'र जावै डेरी
पण घरै मस्सां उबरै
सेर-अधसेर दूध
बो ई भळै चाय सारू।

पण अमावस-पून्यू
थेऊ रै मिस
मौज बणजै
टाबरां रै
चाय-दूध-दही ई नीं
खीर रांध्यां ई कोनी खूटै
टोगडिय़ा ई तूड़ी सूं गैल छुड़ा'र
सबड़कै दूध।
</poem>
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