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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
हाथ में तंगी
अर सिर पर अेढो
फाटक में आयोड़ी बकरी जैड़ी गत।

गाभा-मीठो
बान-बनावो
भाड़ो-भट्टो
लगाावूं तो कठै कतरणी
लिलाड़ माथै सळ
अर अळोच सूं सूकता होठ।

इण अबखै बगत में
देवदूत दांई दीसै डाकियो
मानदेय रै चैक रै मिस
उणियारै सांचर जावै मुळक।
</poem>
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