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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
कदी पटड़ै बगतां
सावळ सुणजो
गूंगी कोनी नहर
सुर-ताल जाणै।

गावै गीत
मनभावणां
भोरांन-भोर परभाती
सिंझ्या आरती
रात नैं हरजस
आपां भलांई भूलग्या
पण नहर रै काळजै तो
अजै ई गूंजै-
आदिम लय-राग।

चिड़ी-कमेड़ी
सांभै साज
डेडर-मछलियां
निभावै
टेरिया रो फरज।
</poem>
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