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खरो सांच / मदन गोपाल लढ़ा

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<poem>
जे कोई सबदकोस छापै
आज पछै
तो 'लुगाई' रै पर्याय रूप में
राखजो नहर नैं।

अेक जैड़ी होवै
दोनां री जूण-गाथा
लुगाई री आंख्यां में पाणी
अर नहर सारू पाणी ई जिनगाणी
उमर सुदी
झेलणो
खाटणो
अर जद-कद
सूकणै रो खतरो।

नदी री जायी
नहर रो नांव
स्त्रीलिंग हुवणो
संजोग कोनी
खरो सांच है।
</poem>
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