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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
जरूरी कोनी
जका आज आपणै सागै है
बै सदीव रैवैला।

बियां सागै दीसतां थकां ई
सागै हुवणो-रैवणो
कठै हुवै जरूरी
केई अैड़ा पण हुवै
जका दीसै तो कोनी
पण हुवै सागै सदीव।

सागै री आडी
सुळझावणी
इत्ती सोरी कठै?
</poem>
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