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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
आंख्यां माथै पावर वाळो चश्मो
लिलाड़ रै ऊपर सूं झांकती चांद
कानां सारकर चमकता धोळा बाळ
कमाई अर खरच रै हिंसाब में खपतो मगज
प्रीत रो कोई रंग कोनी परगासै।

नागण जैड़ै बाळां री घटती लम्बाई
बगत री खंख सूं पाकतो उणियारो
घर रै खोरसै में खटतो डील
टाबरा री टंडवाळी में अटक्योड़ो जीव
जीयाजूण री भाजा-न्हासी रा अैनाण तो मांडै
नायिका रो पड़बिम्ब कोनी दिखाळै।

कांई आपनैं दर में ई नीं दीस्यो प्रेम
परसेवो तो दीस्यो हुवैला पक्कायत
परसेवै में ई पळकै प्रीत रा रंग
परसेवै में ई पनपै प्रीत री बेल।
</poem>
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