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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
कींकर कोई सूय लेवै
दूजै रै पांती री नींद
कींकर कोई जाग लेवै
दूजै रै पांती रो जागण
फुटरापै सारू आरसी में नीं
अंतस में झांकणो पड़ै
प्रीत री आडी नैं अरथावण सारू
कम सूं कम।
चाळीस पगोथिया तो चढणो ई पड़ै।
</poem>
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कींकर कोई सूय लेवै
दूजै रै पांती री नींद
कींकर कोई जाग लेवै
दूजै रै पांती रो जागण
फुटरापै सारू आरसी में नीं
अंतस में झांकणो पड़ै
प्रीत री आडी नैं अरथावण सारू
कम सूं कम।
चाळीस पगोथिया तो चढणो ई पड़ै।
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