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{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
अबै छोडो बाळो!
उण जूनी ओळूं नैं
जिणरी फोटुआं तकात
बदरंग हुयगी
बगत रै हलकां सूं
बंद हुयोड़ै बैंक खातै रै उनमान
जिणमें लेण-देन रो
कोनी हुवै कोई मायनो।
उण घर साम्हीं सूं निकळतां
जिण में कदी भाड़ै रैया आप
अेकर तो थम जावै
पग
मतोमत्तै ई
पण उणरै दरूजै री
कुंडी खड़कावण सूं पैलां
हाथ पाछो खींचणो ई स्याणप है
इण सावचेती नैं बिसर्यां
ओळूं रै दरूजै सूं झांक'र
कांई अणसैंधो उणियारो
ओपरी निजरां सागै
बूझ सकै सवाल-
'क्यूं, कांई बात है?'
</poem>
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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
अबै छोडो बाळो!
उण जूनी ओळूं नैं
जिणरी फोटुआं तकात
बदरंग हुयगी
बगत रै हलकां सूं
बंद हुयोड़ै बैंक खातै रै उनमान
जिणमें लेण-देन रो
कोनी हुवै कोई मायनो।
उण घर साम्हीं सूं निकळतां
जिण में कदी भाड़ै रैया आप
अेकर तो थम जावै
पग
मतोमत्तै ई
पण उणरै दरूजै री
कुंडी खड़कावण सूं पैलां
हाथ पाछो खींचणो ई स्याणप है
इण सावचेती नैं बिसर्यां
ओळूं रै दरूजै सूं झांक'र
कांई अणसैंधो उणियारो
ओपरी निजरां सागै
बूझ सकै सवाल-
'क्यूं, कांई बात है?'
</poem>