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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
बेटी रो बाप बण्यां ई
ठाह पड़ै
बाप हुवणै रो मतळब
हुयो ग्यान म्हनैं
पैली बार
जद थूं
'पापा' कैय'र बतळायो।

थूं म्हारी आतमा रो
विस्तार है,
का अै कोई पूरबलै जलम रा
संस्कार है?
पण सांचाणी
ओ म्हारै सारू
अेक भोत मोटो पुरस्कार है।
</poem>
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