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कुण है बो / मदन गोपाल लढ़ा

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<poem>
दुनिया रै
हरेक गांव में
पक्कायत लाधैला आपनैं
गाभा सीड़तो दरजी
बाळ काटतो नाई
अर टापरा संवारतो कारीगर।

दुनिया रै
हरेक घर में
आप जोय सको
काच, कांगसियो अर तेल-फुलेल।

फुटरापै सारू आफळ
मानखै रो
जुगां-जूनो सुभाव है
पण कुण है बो
जको जद-कद
धूड़, धुंवै अर आग सूं
बदरंग कर न्हाखै
मिनखपणै रो उणियारो।
</poem>
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