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देखणो / मदन गोपाल लढ़ा

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<poem>
देखणै अर देखणै में हुवै मोटो फ रक। फ रक ई रात-दिन रो।
पैली बार देखणो अर छेहली बार देखणो कोनी हुवै अेक जैड़ो। दोनां में आंतरो हुवै कोसां रो। इण आंतरै नैं लांघणै में लाग जावै आखी उमर। केई बार तो ओछी पण पड़ जावै अेक जूण।
पैली बार देखणै में आंख हुवै उतावळी। बा देखै कमती गिणै बेसी। भंवै चौगड़दै। अणदेख्यै सूं आम्हीं-साम्हीं हुवती बेळा उछाव हुवै अंतस में। जीव करबो करै- ओई देखल्यूं, बो ई देखल्यूं। निजरां थमैं कोनी अेक ठौड़। अंचभो ई तिरबो करै दीठ मांय। नैठाव कठै हुवै पैली बार! भळै ई पैली बार देखणै नैं बिड़दाइजै जगती में। लिखारां रच दिया हजारूं गीत इण बाबत। फिलमां में पैली बार देखतां ई हुय जावै हेत। नांव-गांव पूछ्यां पैलां ई बै सूंप देवै दिल। अबै इत्ती हड़बड़ाट सूं नींद तो उड्यां ई सरै। जे दिल री बीमारी लाग जावै तो ई बेजा कोनी बात।
छेहली बार देखणो हुवै इण सूं भोत न्यारो। जे ठाह हुवै कै आप देख रैया हो किणी नैं छेहली बार तो भोत माड़ी हुवै। सै संू मोटी अबखाई तो आ हुवै कै कांई देख्यो जावै अर कांई नीं? क्यूंकै आपनैं ठाह हुवै कै चावता थकां ई नीं देख सकोला फेर बो दरसाव। फ गत ओळूं री आंख सूं करीजैला पाछो देखण री जातरा। हुय सकै उण बगत सीली हुय जावै आंख्यां री कोर। भळै ई उण नमी नैं लुकोवणो हुवै धरम। धरम पाळ्यां ई फ रूंकै मिनखपणै री धजा। छेहली बार देखती बगत करड़ो करणो पड़ै काळजो। आंख रै कैमरै सूं क्लिक करणो अर उण छिण नैं अंतस री ऊंडाई में रमावणो हुवै कवि रो करम।
अबै कवि री सुणो, छेहली बार देखणै सूं ई भोत अबखो हुवै उणनैं अरथावणो कविता रै भेख।
</poem>
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