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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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<poem>
वो आदमी बेकार है यह बात भी सही।
फिर भी वो वफ़ादर है यह बात भी सही।

सरकार से, गरीब को उम्मीद कुछ नहीं,
फिर भी तो ऐतबार है यह बात भी सही।

गोदाम के गोदाम भरे हैं यहाँ मगर,
भूखों की भी भरमार है यह बात भी सही।

इस दौर में जो चाहिए वो है हमारे पास,
दामन भी दाग़दार है यह बात भी सही।

वो वाकई में शेर है मिमिया रहा तो क्या,
माया का ये दरबार है यह बात भी सही।

चुपचाप मैं रहूँ मुझे मन्जूर ही नहीं,
मेरी कलम में धार है यह बात भी सही।
</poem>
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