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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
आपने ठोकरें खाकर कभी नहीं देखा।
किसी दरख़्त ने चलकर कभी नहीं देखा।
वो है सूरज उसे तपने तजु़र्बा केवल,
ज़मीं की आग में जलकर कभी नहीं देखा।
पेट भरने के सिवा ज़िंदगी के माने,
किसी ग़रीब ने जीकर कभी नहीं देखा।
नेकियाँ करके भुला दें यही अच्छा होगा,
किसी नदी ने पलटकर कभी नहीं देखा।
फूल क्या अब एक भी पत्ता नहीं है डाल पर,
पेड़ है फिर भी खड़ा मधुमास के अरमान में।
</poem>
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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आपने ठोकरें खाकर कभी नहीं देखा।
किसी दरख़्त ने चलकर कभी नहीं देखा।
वो है सूरज उसे तपने तजु़र्बा केवल,
ज़मीं की आग में जलकर कभी नहीं देखा।
पेट भरने के सिवा ज़िंदगी के माने,
किसी ग़रीब ने जीकर कभी नहीं देखा।
नेकियाँ करके भुला दें यही अच्छा होगा,
किसी नदी ने पलटकर कभी नहीं देखा।
फूल क्या अब एक भी पत्ता नहीं है डाल पर,
पेड़ है फिर भी खड़ा मधुमास के अरमान में।
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