भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>बच्चों और युवाओं के भविष्य के लिए<br>बहस में शामिल पिपलोदा के श्यामलाल गुरूजी सोच रहे हैं<br>इतने बड़े नेक काम के लिए याद किया गया उन जैसा<br><br>
वे अहोभाग्य समझकर सपनों की टूटी हड्डियाँ<br>अपने भीतर जोड़ रहे हैं<br><br>
पूरा राष्ट्र बहस मे में शामिल है<br>इसलिये इसे राष्ट्रीय बहस कहा गया<br>और श्यामलाल गुरू जी ने भी दो शब्द कहे<br>पिपलोदा गाँव की कच्ची पाठशाला में<br>और सोच खुश हुए - उनके शब्द भी शामिल हुए<br>मुद्दों के राष्ट्रीय दस्तावेज़ में<br><br>
श्यामलाल गुरू जी टाट पट्टियों और डस्टर के बारे में<br>परेशान थे पूरी बहस के दौरान<br>और महीनों तक देखते रहे थे आसमान में<br>नयी टाट पट्टियों की उड़ान.</poem>