भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पत्थर की बैंच
जिस पर रोता हुआ बच्चा
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है
जिस पर एक थका युवक<br>हाथों से आँखे ढाँपअपने कुचले हुए सपनों को सहला एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है<br><br>
जिस पर हाथों से आँखे ढाँप<br>वे दोनोंएक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है<br><br>जिन्दगी के सपने बुन रहे हैं
पत्थर की बैंच जिस पर वे दोनों<br>अंकित है आँसू, थकानजिन्दगी के सपने बुन रहे हैं<br><br>विश्राम और प्रेम की स्मृतियाँ
इस पत्थर की बैंच पर!
</poem>