भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
वही गगन भी छूता है जिसका ज़मीन से नाता है।है
मिट्टी का पुतला ही उड़कर चाँद पे ध्वज फहराता है।
उसको भी देखा है जो अपनी ज़मीन से जुड़ा हुआ,
उसको भी देखा है जो बनकर पतंग इतराता है।
नन्हा -सा वो दिया देखिये तूफाँ से लड़ जाता है।
सहनशीलता सिखा सिखा कर किसने मार दिया उसको,
एक शेर का बच्चा अब बिल्ली से क्यों मिमियाता है।
गुस्सा आया, प्यार भी आया, रूठे भी और मान गये,
तेरी इसी अदा पर मेरा दिल लट्टू हो जाता है।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits