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|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
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<poem>
फांस सी चुभन कोई
और सवाल कितने बेरहम

कि जबाब हुए कील से
और शब्द-शब्द एक सितम

प्रीत गर राधा हुई
कृष्ण बनेंगे प्रियतम

खंजरों की नोक पे
शहद की एक परत चढ़ी

बिन पिया के ही सखी
प्रीतिमय ज़िन्दगी रंगी रही।
</poem>
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