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जंगल / लवली गोस्वामी

8,706 bytes removed, 08:06, 4 सितम्बर 2017
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जिन्हें यात्राओं से प्रेम होता है बेतरतीब टहनियों के बीच लटके मकड़ियों के उलझे जालवे यात्री आकाश की तरह कम फ़क़ीरों की तरह अधिक यात्रा करते हैंजिन्हें स्त्रियों से प्रेम होता फुसफुसाहट है जंगल के कानों मेंवे उनसे पुरुषों धरती पर बिखरी पेड़ों की तरह कम उथली उलझी जड़ें स्त्रियों की तरह अधिक प्रेम करते हैंप्रेम उन फुसफुसाहटों के रंगीन ग़लीचे की बुनावट ठोस जवाब में अनिवार्य रूप से उधड़ना पैवस्त होता हैजैसे जन्म लेने लगते धरती के दिन से हम चुपचापमरने की ओर क़दम दर क़दम बढ़ते रहते कहकहे हैंवैसे ही अपनी दोपहरी चकाचौंध खोकरधीरे- धीरे हर प्रेम सरकता रहता हैसमाप्ति की गोधूलि की तरफटूटना नियति है प्रेम की यह तो बिलकुल हो ही नहीं सकताकि जिसने टूट कर प्रेम किया हो वह अंततः न टूटा हो
प्रेम आकाश की फुसफुसाहटों में लिए गए कुछ चिल्लर अवकाशन उलझकरप्रेम टूट जाने से बचाने में मदद करते चालाक मकड़ियाँ उस पर कुनबा संजोती हैंवह जो प्रेम तितलियाँ दूर तक उड़ने के उत्साह में आपका ख़ुदा है अगर अनमना होकर छुट्टी मांगेनज़दीक़ लटके जाले नहीं देख पाती तो यह समझना चाहिए वे पंखों से चिपक जाने वालीकि प्रेम के टूटने के दिन नज़दीक़ लिसलिसी कानाफूसियों से हारकर मर जाती हैंपर टूटना मुल्तवी की जाने की कोशिशें ज़ारी है
प्रेम आपको तोड़ता है धरती की हँसी को नियामत समझकरआपके रहस्य उजागर करने के लिएविनम्र छोटे कीट वहाँ अपनी विरासत बोते हैंबच्चा माटी के गुल्लक लेकिन उन अड़ियल बारासिंघों को यह जानकर भी तोड़ता है सींग फँसा कर मरना पड़ता हैंकि उसके अंदर चंद सिक्कों जो हँसी के अलावा कुछ भी नहीं यह तुम्हारे लिए तो कोई रहस्य भी नहीं थाकि मेरे अंदर कविताओं के अलावा कुछ भी नहीं फिर भी तुमने मुझे तोडाढाँचे को अनदेखा करते हैं
हम दोनों खानाबदोश घुमक्कड़ों के उस नियम को मानते थेकि चलना बंद कर देने से आसमान में टंगा सूरज नीचे गिर जाता है और मनुष्य का अस्तित्व मिट जाता है(2)
आजकल लोग कोयले की खदानों में स्मृतियों से हम उतने ही परिचित होते हैंज़हरीली गैस जाँचने के लिएइस्तेमाल होने वाले परिंदे जितना अपने सबसे गहरे प्रेम की तरहअनुभूतियों सेपिंजड़े में लेकर घूमते पौधे धूप देखकर अपनी शाखाओं की दिशा तय कर लेते हैं प्रेमज़रा सा बढ़ा माहौल प्रेम के समर्थन के लिए सुदूर अतीत में ज़हर का असरकहीं स्मृतियाँऔर परिंदे की लाश वहीं छोड़करआदमी हवा हो जाता हैअपनी तहों में वाज़िब हेर-फेर कर लेती हैं
कुछ लोगों में ग़ज़ब हुनर होता हैपल भर में कई साल झुठला देते हम प्रेम करते हैं या स्मृतियाँ बनाते हैंफिर अनकहे की गाठें लगती रहती यह बड़ा उलझा सवाल हैसाल दर साल रिश्तों में और एक दिनतभी तो हम केवल उनसे प्रेम करते हैंगाठें ही ले लेती है साथ की माला मेंजिनकी स्मृतियाँ हमारे पास पहले से होती हैं प्रेम के मनकों की जगहया जिनके साथ हम आसानी से स्मृतियाँ बना सकें
प्रेम कभी पालतू कुत्ता नहीं हो पाताजो समझ सकेआपका खीझकर चिल्लाना आपका पुचकारनाआपका कोई भी आदेशवह निरीह हिरन सी पनैली आँखों वाला बनैला जीव हैआप उस पर चिल्लायेंगे वह निरीहता से आपकी ओर ताकेगाआप उसे समझदार समझ कर समझायेंगेवह बैठ कर कान खुजायेगाअंत में तंग आकर आपउसे अपनी मौत मरने के लिए छोड़ जाएंगे(3)
जब भी सर्दियाँ आती हैं मेरी इच्छा होती हैमैं सफ़ेद ध्रुवीय भालू में बदल जाऊँऐसे सोऊँ जाता हुआ सूरज सब कलरवों की नामुराद सर्दियों केख़त्म होने पीठ पर ही मेरी नींद खुलेजब भी प्रेम दस्तक देता छुरा घोंप जाता है द्वार परमैं चाहती हूँ मेरे कान बहरे हो जाएँकि सुन ही न सकूँ मैं इसके पक्ष गोधूलि की बेला आसमान मेंबिखरा दिवस का रक्त अगर शाम हैदी जाने वाली कोई दलीलजो खूबसूरत शब्द हमसे बदला लेना चाहते हैं वे हमारे छूट गए पिछले प्रेमियों के नाम बन जाते तो रौशनी की मूर्च्छा को लोग रात कहते हैं
बाढ़ का पानी कोरी ज़मीं को डुबो कर लौट जाता हैजब वह उनींदी लाल आँखें खोलता मैं उसे सुबह कहती थीधरती की देह पर फिर भी छूट जाते हैं तरलता जब अनमनापन उसकी गहरी काली आँखों के छोटे गह्वरतले सेदुःख के कारणों का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होताबस एक - सा पानी होता है जो सहोदरपने के नियम निबाहताउम्र भर दुःखों के सब गह्वरों में झिलमिलाता रहता है नक्षत्र भरे आकाश तक फैलता मेरी रात होती थी
भय कई तरह के होते हैं, लेकिन आदमियों में कमजोर पड़ जाने का भय सबसे बलवान होता है अंकुरित हो सकने वाले सेहतमंद बीज को प्रकृति कड़े से कड़े खोल में छिपाती है बीज को सींच कर अपना हुनर बताया जा सकता हैउसपर हथौड़ा मारकर अपनी बेवकूफी साबित कर सकते हैंयों भी तमाम बेवकूफ़ियों को ताक़त मानकर ख़ुश होना इन दिनों चलन में है(4)
रोना चाहिए अपने प्रेम टहनियों के बीच टंगे मकड़ियों के जालों के अवसान पर जैसे हम किसी सम्बन्धी बीच की मौत पर रोते हैखाली जगह से जंगल की आँखें मुझे घूरती हैं वरना मन में जमा पानी ज़हरीला हो जाता हैफिर वहाँ जो भी उतरता है उसकी मौत हो जाती हैत्यक्त गहरे कुऐं में उतर रहे मजदूर मेरे कन्धों के रोम किसी अशरीरी की तरहउपस्थिति सेचिहुँककर बार-बार पीछे देखते हैं
तुम्हारी याद भी अजीब शै हैउन्हें शांत रहने को कहती मैं खुद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखती जब भी आती ऐसे मुझे हमेशा यह लगता रहता है कविता की शक़्ल में आती कि वह मुझसे कुछ ही दूरबस वहीं खड़ा हैजहाँ मैंने अंतिम दफ़ा उसे विदा कहा था
तुम किसी क्षण मरुस्थल थे. रेत प्रेम में उसका मेरे पास न होनाकभी उसकी उपस्थिति का मरुस्थल नही. वह तो आंधियों की आवाजाही से आबाद विलोम नहीं हो पायामुझे लौटते देखती उसकी नज़र कोमैं अब भी रहता है. उसमे रेत पर फिसलता सा अक्सर दिख जाता है जीवन. तुम शीत का मरुस्थल थे जिसमे नीरवता का राग दिवस - रात्रि गूंजता था. तुमसे मिलने से पहले मैं समझती थी कि सिर्फ बारिश से भींगी आँचल और सींची गई धरती पर उगे घनघोर जंगल में ही कविता अपना मकान बनाना पसंद करती है, सिर्फ वहीं कविता अपनी आत्मा का सुख पाती है. तुमसे मिलकर मैंने जाना बर्फ केशों के मरुस्थलों में भी निरंतर आकार साथ कन्धों लेता है सजीव लोक. शमशान सी फैली बर्फीली घाटियाँ भी कविता के लिए एकदम से अनुपयोगी नही होती. जीवन होता है वहाँ भी कफ़न सी सफ़ेद बर्फ़ानी चादर के अंदर सिकुड़ा और ठिठुरता हुआ. कुलबुलाते रंग - बिरंगे कीट - पतंगे न सही लेकिन सतह पर जमी बर्फ की पारभाषी परत के नीचे तरल में गुनगुनापन होड़ करता है जम जाने की निष्क्रियता के ख़िलाफ़. मछलियों के कोलाहल वहाँ भी भव्यता से मौजूद रहते हैं.लिपटा पाती हूँ
जिसे बस चुटकी भर दुःख मिला हो वह उस ज़रा से दुःख को तम्बाकू की तरहलुत्फ़ बढ़ाने के लिए बार - बार फेंटता मसलता हैजिसने असहनीय दुःख झेला हो वह टुकड़े भर सुख की स्मृतियों सेअनंत शताब्दियों तक हो रही दुःख की बरसात रोकता हैउस गरीब औरत की तरह जो जीवन भर शादी में मिलीचंद पोशाकों से हर त्यौहार में अपनी ग़रीबी छिपाती हैसंतोष से अपना शौक़ श्रृंगार पूरा कर लेती है(5)
सब कहाँ हो पाते हैं छायादार पेड़ों के भी साथीहरे लहलहाते जंगलों में लाल-भूरी धरती फोड़करकुछ उनकी छाल चीर कर उनमें डब्बे फंसा देते हैंउग आये सफ़ेद बूटे जैसे मशरूमजिसमे वे पेड़ों का रक्त जमा करते हैंदुनिया में दुःख मकड़ी के तमाशाई ही नहीं होते यहाँ पीड़ा सघन जालों के बीच की खाली जगह से गिर गए जंगल के कुछ सौदागर भी होते हैंनेत्र गोलक है
जंगल हमेशा मुझे अविश्वास से देखता हैजैसे वह मेरा छूट गया आदिम प्रेमी हैजो अधिकार न रखते हुए भी यह ज़रूर जानना चाहता हैकि इन दिनों मैं प्रेम की राह पर सन्यासियों की तरह चलती क्या कर रही हूँजीवन की राह पर मृत्यु द्वारा न्योते गए अतिथि की तरह
जिन गुफाओं अविश्वासों के जंगल में संग्रहित पानी तकमैंने उसे हमेशाकभी रौशनी नहीं पहुँचती लौट आने के भरोसे के साथ खोया थावहाँ की मछलियों की आँखें नहीं होतीखूबसूरत जगहों में पैदा होने वाले कवि वह मेरे पास से हमेशा भी हो पाएंतब भी वे कविता से प्रेम कर बैठते हैंअगर वे कवि हो ही जाएँतो दुनिया लौटने के सब बिंब उनकी कविता में जंगल भरोसे के चेहरों पर आने वाले अलग – अलग भावों केअनुवाद में बदल जाते हैंसाथ गया
(6)
सोचती हूँ तुम्हारे मन के तल में जमा मेघों की साज़िश भरी गुफ्तगू को बारिश कहेंगेकाँच से पानी के वहाँ रखे नकार के पत्थरों तो सब दामिनीयों को आकाश में चिपकी जोंक मान लेना पड़ेगाक्या जमती होगी स्मृतियों की कोई हरी काई उन्होंने सूरज का खून चूसा तभी तो उनमें प्रकाश है
मन आसमान के झिलमिलाते नमकीन सोते में हरापन कैसे कैद होगासब चमकीले सूरजों को चाहिए कि वे स्याह ईर्ष्यालु मेघों से बच कर चलेंआखिर किस चोर दरवाजे से आती होगी वहाँ मेघों के पास सूरज की ताज़ी रौशनीजिसमें छलकती झिलमिलाती होंगी दबी इच्छाओं चूस कर चमकने वाली जोंकों की चंचल मछलियाँफ़ौज होती है बियाबान में टपकती बूंदों की लय क्या कोई संगीत बुन पाती होगीजो उनका साथ देने को रह-रह कर अपनी नुकीली धारदार हँसी माँजती है
नाज़ुक छुअन की सब स्मृतियाँ तरलता के चोर दरवाजे हैंबीता प्रेम अगर तोड़ भी जाए तब भी उसकी झंकार दूर तक पीछा करती है पुकारते और लुभाते कुछ लोग दामिनीयों जैसे चमकते हुएजैसे आप रस्ते पर आगे बढ़ जाएँ तब भी इस आशा उत्साह से तुम्हारे जीवन में कि शायद आप लौट ही पड़ेंआएंगेसड़क पर दुकान लगाये दुकानदार आपको आवाज देते रहते हैं धरती पर पड़ी शुष्क पपड़ी जैसे भंगुर होते हैं मन के निषेध – पत्रकोई हल्के नोक से चोट करे तो पपड़ी टूट कर अंकुर बोने जितनी नमी स्याह मेघों की गुंजाईश मिल ही जाती है अगली बार झिलमिलाते जल फ़ौज के लिएहरकारे बनकरकोई यात्री आपके पाषाण अवरोधों का ध्वंस करेतो यह मानना भी बुरा नहीं कि कुछ चोटें अच्छी भी होती हैसूरज रौशनी तुम दिखावटी चमक के तेज़ सरकंडों इन शातिर नुमाइंदों से अँधेरे काटता हैबचनाबादलों की लबालब थैली भी आखिर गर्म हवा का स्पर्श पाकर ही फटती है जो सभ्यताएँ मुरझा जाती हैं उन्हें आँख मटकाते बंजारे सरगर्मियाँ बख़्शते हैजंगलों की हरीतिमा अनावरण ये थोड़े समय तक झूठे उत्साह के भुलावे देकरसंकट के बावजूद किसी चित्रकार तुम्हारे भीतर की राह देखती है  पत्थरों के अंदर बीज नहीं होतेलेकिन अगर वे बारिश में भींग गए होंऔर वहाँ रोज धूप की जलन नहीं पहुँच रही होतब वहाँ भी उग ही आती है काई की कोई हरीतिमासब रौशनी चूस लेंगे ।
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