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किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
 
ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोका है सब, मगर फिर भी
 
हजार बार ज़माना इधर से गुजरा
 
नई नई है मगर कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी
 
खुशा इशारा-ए-पैहम, जेह-ए-सुकूत नज़र
 
दराज़ होके फ़साना है मुख्तसर फिर भी
 
झपक रही हैं ज़मान-ओ-मकाँ की भी आँखें
 
मगर है काफ्ला आमादा-ए-सफर फिर भी
 
पलट रहे हैं गरीबुल वतन, पलटना था
 
वोः कूचा रूकश-ए-जन्नत हो, घर है घर, फिर भी
 
तेरी निगाह से बचने मैं उम्र गुजरी है
 
उतर गया रग-ए-जान मैं ये नश्तर फिर भी