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|रचनाकार=मिगुएल हेरनान्देजहेरनान्देज़
|अनुवादक=लता
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<poem>
मिगुएल हेरनानदेज़ हेरनान्देज़ ने जीवन संगीत के सुरों को संघर्ष की तान पर कस खन्दकों से रची युद्ध और प्रेम की कविता। एक योद्धा-कवि जिसने अपने जैसे अन्य योद्धा कवियों की तरह ही मेहनतकश जनता की लड़ाइयों को मज़बूत बनाने के लिए कविता को अपना हथियार बनाया। स्पेन के गृहयुद्ध के दौरान इस कवि ने रेडियो पर, बैरकों में, सैनिकों के बीच फासिस्टों के ख़िलाफ़ चल रहे संघर्ष में सांस्कृतिक मोर्चे की कमान सँभाली। संघर्ष से सृजित मिगेल एरनानदेस की कविताएँ मेहनतकश जनता, उसकी ज़िन्दगी, उसकी ख़ुशियाँ, उत्सव, आँसुओं, लड़ाइयों से गहरे जुड़ी थीं और यह जुड़ाव मात्र भावनात्मक ज़मीन पर नहीं था। स्पेन के गृहयुद्ध के दौरान उसकी जीवन-ज्ञान-व्यवस्था का समन्वय सर्वहारा दर्शन और विज्ञान से हुआ। हालाँकि सर्वहारा दर्शन और विज्ञान के सम्पर्क में आने के 6 सालों के अन्दर महज़ 31 साल की उम्र में मिगेल की मौत हो गयी, लेकिन इसके बावजूद जन-संघर्षों में प्रत्यक्ष भागीदारी ने उसकी वर्ग चेतना को उन्नत बनाया। ये छः साल मिगेल की ज़िन्दगी और पूरे स्पेन के इतिहास के लिए बेहद उथल-पुथल के दौर थे। 1931 में प्रिमो दे रिवेरा की तानाशाही को समाप्त कर बनी रिपब्लिकन सरकार ने पूरी व्यवस्था में परिवर्तन के लिए कई उग्र सुधार किये जिसमें भूमि-सुधार, सेना में परिवर्तन, चर्च और शिक्षा के सम्बन्ध-विच्छेद, श्रम सुधार आदि शामिल थे। इसके अलावा कातालोनिया और बास्क क्षेत्रों को इस सरकार ने कई स्वायत्त अधिकार दिये। हालाँकि पिछड़ी अर्थव्यवस्था और महामन्दी के प्रभाव में इनमें से कई सुधारों, मुख्यतः श्रम सम्बन्धी सुधारों को पूरी तरह लागू कर पाना सम्भव नहीं हो पा रहा था। इस सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी ज़मींदारियाँ जिसे लातिफुन्दिया कहा जाता था, के अधिग्रहण की शुरुआत की और इन ज़मीनों को ग्रामीण सर्वहारा के बीच इनएलिएनेबल युज़फ्रक्ट (न छीने जा सकने वाले भोगाधिकार) के आधार पर वितरित करने की शुरुआत भी की। लेकिन यह प्रक्रिया भी काफ़ी धीमी थी और इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी भी बढ़ रही थी। शहरी मज़दूरों की वेतन में वृद्धि तो कर दी गयी, लेकिन महामन्दी और पूँजीपतियों की वजह से ये सुधार लागू नहीं हो पा रहे थे। अभी यह सरकार स्थायी नहीं हो पायी थी और साथ ही पूरे यूरोप की फासिस्ट ताक़तें इस सरकार को गिराने के लिए स्पेन के फासिस्टों को हर तरह की मदद पहुँचा रही थी। 1933 में रिपब्लिकन सरकार गिरती है और आलेख़ान्द्रो लेरुक्स के नेतृत्व में सेदा (स्पैनिश कॉनफ़िडरेशन ऑफ़ अटॉनमस राइट) की सरकार बनती है जिसमें दक्षिणपन्थी और फासिस्ट ताक़तों की बहुतायत थी। इस सरकार ने अपने एक साल के कार्यकाल में जनान्दोलनों का बर्बर दमन किया और जनता के जनवादी अधिकारों का हनन किया। 1934 में बारसेलोना के औद्योगिक क्षेत्र और अस्तुरियास की खानों में मज़दूरों की बड़ी-बड़ी हड़तालें संगठित हो रही थीं। लेरुक्स की सरकार ने अस्तुरिया के खान मज़दूरों की हड़ताल का बर्बर दमन किया जिसमें 3,000 मज़दूर लड़ते हुए मारे गये और 35,000 को जेलों में क़ैद कर दिया गया। अस्तुरियास खान मज़दूरों के हड़ताल के बर्बर दमन ने मिगेल के संवेदनशील अन्तःकरण को झकझोरकर रख दिया।
मिगुएल की उभरती राजनीतिक चेतना की पहली अभिव्यक्ति उसकी कविता ‘सोनरेईदमे” (मेरी तरफ़ मुस्कुराओ) में आती है। इस कविता में मिगुएल की परम्परागत शैली और धार्मिक प्रभाव से स्पष्ट विच्छेद और नेरुदा और आलेक्सान्द्रे का प्रभाव दिखता है। मिगुएल के सामने वह दुनिया खुलती हुई नज़र आती है जिसमें कविता तराशे हुए हीरे-जवाहरात से जड़े आभूषण नहीं होती, बल्कि जिसमें कविता साँस लेती, धड़कती, लड़ती, जनता के साथ खड़ी होती है। सोनरेईदमे में मिगुएल पूँजी की बेरहम मार और घृणित चर्च के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करता है –
मिगुएल हेरनान्देज़
<poem>
मुस्कुराओ मेरी तरफ़, कि मैं जा रहा हूँ
वहाँ, जहाँ हमेशा से हो तुम सब,
जो धान की बालियों और पुलियों से ढँक देते हो हम पर थूकने वालों के मुँह,
जो मेरे साथ खेतों, मचानों, लुहारखाने, भट्ठी में
दिन-ब-दिन नोंच फेंकते हो पसीने के मुकुट।
मैं अपने-आपको मुक्त करता हूँ मन्दिरों से:
मुस्कुराओ मेरी तरफ़
</poem>
—
मिगुएल के संवेदनात्मक-अनुभवात्मक जीवन-ज्ञान- व्यवस्था के साथ सिद्धान्त का समन्वय उसकी कविता आन्दालूसेस दे ख़येन में स्पष्ट दिखती है। इस कविता में वह उग्र मानवतावादी भावनात्मक उद्गार की सीमाओं को भेदता हुआ उत्पादन तथा उत्पादन सम्बन्धों में जनता की भूमिका तक पहुँचता है। इस कविता में ख़येन के आन्दालूसी उस मेहनतकश मज़दूर आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपनी मेहनत से पूरी दुनिया को काया और सुन्दरता देती है। इतना ही नहीं अपने ही उत्पादन से अलगाव में जी रही इस सर्जक आबादी को मिगेल उसकी शक्ति का एहसास दिलाता है।
<poem>
जैतून चुनने वाले
ख़येन के आन्दालूसियो,
अभिमानी जैतून चुनने वालो
आत्मा की गहराई से मुझे बताओ
किसने बड़ा किया इन जैतून के पेड़ों को
ख़येन के आन्दालूसियो
न पैसे ने, न मालिक ने और
न ही निरा निरे शून्य ने
बल्कि मौन मिट्टी,
मेहनत और पसीने ने
शुद्ध पानी और ग्रहों
के साथ मिलकर
तुम तीनों ने दी है ख़ूबसूरती
इसके घुमावदार तनों को
ख़येन के आन्दालूसियो,
अभिमानी जैतून चुनने वालो
आत्मा की गहराई से मुझे बताओे
किसने दूध पिलाया जैतून के पेड़ों को।
न जाने जैतून की कितनी सदियाँ,
बँधे हुए हाथ-पाँव
दिन-ब-दिन, रात-दर-रात
अपने बोझ तले दबाती हैं तुम्हारी हड्डियों को!
ख़येन के आन्दालूसियो,
अभिमानी जैतून चुनने वालो,
मेरी आत्मा पूछती है: किसके, किसके हैं
ये जैतून के पेड़?
ख़येन, अपने चन्द्रिका पत्थरों से
पूरे आक्रोश में उठो
कि कोई भी गुलाम नहीं रहेगा
न तुम न तुम्हारे जैतून के बागीचे
तेल की पारदर्शिता और
उसकी महक के बीच तुम्हारी मुक्ति
है पर्वतों की मुक्ति में
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(ख़येन स्पेन के आन्दालूसिया क्षेत्र का एक शहर है जिसे जैतून के तेल का वैश्विक केन्द्र माना जाता है।)
मिगेल के जीवन के अन्तिम दिन ज़्यादातर जेल की सलाखों के पीछे बीते। लेकिन सलाखों के बाहर भी ज़िन्दगी क़ैद थी। इन अँधेरे दिनों के गीत मिगेल ने अपनी कविताओं में गाए हैं। ये कविताएँ उन अँधेरे, निराशा, हताशा, विशाद और मायूसी भरे दिनों की कविताएँ हैं जो अँधेरे समय का गीत गाती हैं। ऐसी ही एक कविता है नाना दे सेबोया (प्याज़ की लोरी)। मिगेल की पत्नी ने उसे जेल में चिट्ठी भेजी और उसे बताया कि घर में खाने को कुछ भी नहीं है सिवाय प्याज़ और ब्रेड के। मिगेल का एक छोटा बेटा था, मिगेल ने जेल से अपने बेटे के लिए यह लोरी लिखी थी –
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प्याज़ की लोरी
प्याज पाला है
बेचारा और क़ैद:
तुम्हारे दिन और
मेरी रातों का पाला
भूख और प्याज:
काली बर्फ़ और
बड़ा सा गोल पाला।
भूख के झूले में
है मेरा लाल
जो पल रहा था
प्याज के ख़ून पर
लेकिन तुम्हारा ख़ून
चीनी, प्याज़ और
भूख का पाला
चाँदनी में ढली
साँवली औरत
बहती है झूले पर
रेशा-रेशा
हँसो, मेरे लाल
कि ज़रूरत होने पर
तुम चाँद को भी
निगल जाओगे।
तुम्हारी हँसी मुझे आज़ाद करती है,
मुझे पंख देती है
मुझसे मेरा अकेलापन छीन लेती है
नोच देती है मेरी सलाखों को।
मुँह जो उड़े, दिल
जो तुम्हारे होंठों पर बिजली की तरह कौंध जाये।
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