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इज़्ज़तपुरम्-26 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
घिस गयी
उसकी जुबान
चलते-चलते
पैसेन्जर ट्रेन के
इंजन की तरह

सैा ग्राम-पाँच की
सैा ग्राम-पाँच की
ताजा भुनी
चुरमुरी
बादाम की कली
मूँगफली
रामफल की

सिर पर सवार
मूँगफली
का टोकरा
सहारा का उसे
ऊँट बना देता है

एक ही हाल में
सारी ट्रेन बिरादरी
बीड़ी-पान-सिगरेट
गुहारता झिनकू बरई
चाय गरम-ताजा समोसा
लिए फेरई
लखनउआ रेवड़ी
बखानता रमजान
हिन्दुस्तान-सरिता-सहारा
ले भटकता-प्रभु पाँड़े
लाठी की धुन पर
टेरता सूरदास
और स्वच्छता की प्रतीक
भोली गुलाबो
</poem>
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