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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कीडों-मकोड़ों को
स्वच्छता
कहाँ अच्छी लगे?
क्यों नहीं ढूँढ लेती
झाड़ू का विकल्प
कोई और काम तलाश
अजनवी की
मदद और सलाह
लेने में
प्रथम बार झिझकी वह
पर
दूसरी तरफ
माँ है कि
रूपया देखती है
बढ़ा शरीर नहीं
धधक उठे
एक साथ
कई सवाल
मन के कोने में
</poem>
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|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
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कीडों-मकोड़ों को
स्वच्छता
कहाँ अच्छी लगे?
क्यों नहीं ढूँढ लेती
झाड़ू का विकल्प
कोई और काम तलाश
अजनवी की
मदद और सलाह
लेने में
प्रथम बार झिझकी वह
पर
दूसरी तरफ
माँ है कि
रूपया देखती है
बढ़ा शरीर नहीं
धधक उठे
एक साथ
कई सवाल
मन के कोने में
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