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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
समय की नब्ज पकड
करमू ने साफ कहा
सडी-गली घटिया
परम्परायें छोड़
दुनिया बदल चुकी
जब सन्तान
कर्ता की
अवस्था में
दाखिल हो
तो उसे
स्वविवेक से
स्वनिर्णय करने का
पूरा अधिकार होना चाहिए
अन्यथा
स्थिति जटिल हो सकती है
अभी नया खून है
असहमत हो
पुरूष से
नारी हठ उतर आया
प्रतिवाद पर
बेटी को
हमारे समाज में
इतनी छूट
भला कैसे हो?
उसकी तो
बागडोर होनी चाहिए
मेरे हाथ में
</poem>
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
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<poem>
समय की नब्ज पकड
करमू ने साफ कहा
सडी-गली घटिया
परम्परायें छोड़
दुनिया बदल चुकी
जब सन्तान
कर्ता की
अवस्था में
दाखिल हो
तो उसे
स्वविवेक से
स्वनिर्णय करने का
पूरा अधिकार होना चाहिए
अन्यथा
स्थिति जटिल हो सकती है
अभी नया खून है
असहमत हो
पुरूष से
नारी हठ उतर आया
प्रतिवाद पर
बेटी को
हमारे समाज में
इतनी छूट
भला कैसे हो?
उसकी तो
बागडोर होनी चाहिए
मेरे हाथ में
</poem>