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इज़्ज़तपुरम्-59 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
कैसी है
अम्मीजान

कहने को तो
औलाद की तरह पाले
पर , हकीकत में हैं वो
भेड़-बकरियों की तरह

कसाइयों को
खुदा बराबर तरजीह दे

विक्रय-कला में उस्ताद
आँख-नाक-कान
कपोल-केश-ग्रीवा
दन्त-अधर-छाती
कमर-पेट-पेड़ू
नितम्ब-पाँव –उँगली

अंग-अंग की
खूबियाँ बड़ी
बारीकी से बताये
</poem>
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