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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जीना ही जीवन है!
चलो
सफ़र अपूर्ण अभी
हार नहीं मानो
आखिरी साँस तक!
मंद-मंद अनवरत
प्रज्वलित वर्त्तिका
लौ लगी
अटूट प्रेम
रिक्त है
अतृप्त है
विकल उर
अशेष मन
प्रतीक्षारत
आशा में ढूँढता
अनन्त सुख
</poem>
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|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
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जीना ही जीवन है!
चलो
सफ़र अपूर्ण अभी
हार नहीं मानो
आखिरी साँस तक!
मंद-मंद अनवरत
प्रज्वलित वर्त्तिका
लौ लगी
अटूट प्रेम
रिक्त है
अतृप्त है
विकल उर
अशेष मन
प्रतीक्षारत
आशा में ढूँढता
अनन्त सुख
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