भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
छोटी लाइन की सुस्त रेलगाड़ी से
अल सुबह ही जो सुदूर सुपौल से
सहरसा जंक्शन पहुँचे हैं
उन्हें मालूम हो कि
उनकी रेलगाड़ी
अगली सुबह आठ-साढ़े आठ से पहले
नहीं खुलनेवाली खुलने वाली !
अपनी तरफ से एक पैसा ढिलाई नहीं
कि पूरा दिन पूरी रात काट लेंगे जंक्शन पर !!
अक्सर ही, सुपौल के हिस्से से चुरा लिए गएऐसे दिनदिनों-रात रातों का अक्सर ही साक्षी बनता है
सहरसा जंक्शन
 इसे मालूम हैकि ऐसे ही न जाने कितने ही सुपौल हैंजिनके हिस्से सेकेऐसे कई दिनदिनों-रात रातों को छीन कर ही
पटरी पर रह पाता है पंजाब !
मुम्बई की कर पाता पाती है मस्ती !
और दौड़ती रह पाती है दिल्ली !
सहरसा तो महज पूर्वाभ्यास है !!
</poem>
{{KKMeaning}}
92
edits