भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीत / जया पाठक श्रीनिवासन

1,768 bytes added, 04:09, 13 अक्टूबर 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सारंगी इसलिए बनी थी
कि प्रकृति किसी कंधे की टेक ले
सुना सके
पीड़ा की तान पर
पिघलते गीत

तबला बना
इस लिए
कि वो बाँध सके
उन तानों को
अंतहीन आवर्तनों के अहाते में
जो आते-जाते उन गीतों के आघातों से
बस !
टूटने टूटने को होते

कि तभी
थाम लेता कोई
उन गिरते अहातों को
कंठ से फूटे
एक कसे हुए अलाप में

जीवन जो एक दुरूह वृत्त सा था अबतक
बन जाता एक बिंदु मात्र
और मैं तिरता - संज्ञाहीन
हद से अनहद तक के
अंतहीन में
बेपरवाह

कि तभी
कोई लहर
थमा जाती
एक मुट्ठी सितारे

यूँ तो
पथ भी मैं
पथिक भी मैं
फिर भी चलता हूँ दिन भर
कि जेब में भरे सितारे
बजते रहे
गूंजते रहे संगीत

आत्मा
इसलिए बनी थी
कि प्रकृति के गीतों को
चाहिए था
एक आसमान
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits