भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं बिना हिले डुले
बिना सर घुमाए
देखता हूँ वह सब
जितना दिख जाता है
खुद ब खुद
आसानी से
जितना दिखाना चाहता है वह
जो समक्ष खड़ा रह जाता है
युद्ध के बाद!
वही फिर
भर देता है
मेरे मुंह में
कानो में
आँखों के आगे
चमकीले हीरे मोती
और पकड़ा देता है हाथों में
कलम
फिर जो कुछ वह कहता है
मैं लिखता जाता हूँ
सब लिख लेने के उपरांत
सामने देखता हूँ-
मेरे आगे वह राम बना बैठा होता है
और
चरणों में होता है
पराजित, मृतप्राय रावण!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं बिना हिले डुले
बिना सर घुमाए
देखता हूँ वह सब
जितना दिख जाता है
खुद ब खुद
आसानी से
जितना दिखाना चाहता है वह
जो समक्ष खड़ा रह जाता है
युद्ध के बाद!
वही फिर
भर देता है
मेरे मुंह में
कानो में
आँखों के आगे
चमकीले हीरे मोती
और पकड़ा देता है हाथों में
कलम
फिर जो कुछ वह कहता है
मैं लिखता जाता हूँ
सब लिख लेने के उपरांत
सामने देखता हूँ-
मेरे आगे वह राम बना बैठा होता है
और
चरणों में होता है
पराजित, मृतप्राय रावण!
</poem>